Thursday 3 August 2017

राजस्थानी लोक साहित्य एवं संस्कृति

राजस्थानी लोक साहित्य एवं संस्कृति --डॉक्टर नन्द लाल कल्ला , राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर, पृष्ठ १३४, मूल्य रुपये १५०/=, संस्करण २०००
समीक्षा (Review):
राजस्थान एक अलौकिक प्रदेश है जिसमें एक ओर रेत के विशाल टीले हैं तो दूसरी ओर हरे भरे जंगल , कहीं पर पर्वत श्रंखला है तो कहीं दूर दूर तक समतल जमीन, जिसमे जंगली झाड़ियों के अलावा और कुछ नहीं । प्रदेश के विभिन्न हिस्सों के लोगों के रहन सहन के तरीके भी अलग अलग है। उनकी भाषाएँ भी अलग अलग हैं परन्तु उनमें अनुपम सी मिठास है। राजस्थानी लोक संगीत, लोक कथा, लोक साहित्य सभी निराले है, सबसे हट कर हैं और उनमें अपना एक आकर्षण है जो जनमानस को अपनी ओर बरबस खींच लेता है ।राजस्थान में एक कमी जरूर है वह है जल की परन्तु प्रेमभाव में कहीं कमी नहीं। लोकगाथाएँ , लोक साहित्य और लोकगीत, समय के बीतने के साथ लुप्त नहीं हुए और वे आज भी उतने ही मजबूत हैं, और आगे और सशक्त होंगे , इसमें कोई शक नहीं ।
इस पुस्तक के लेखक डॉक्टर नन्द लाल कल्ला , जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
के हिंदी विभाग में सह-आचार्य हैं। विद्वान् लेखक ने अपनी इस पुस्तक के सात अध्यायों में , राजस्थान के लोक-साहित्य और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है।
लोक गीतों में मानव के विभिन्न भाव, राग के रूप में प्रकट होते हैं और इनका दायरा विशाल होता है ।ये, मानव जीवन के सुख और दुख , सभी को दर्शाते हैं।अध्याय १ में , यह चर्चा करते हुए, लेखक मोटे तौर पर , लोक गीतों का आठ भागों में वर्गीकरण करते हैं ।विभिन्न अवसरों के लोकगीतों के उदाहरणों से , पुस्तक में एक जीवंत चित्रण प्रस्तुत किया गया है। अध्याय २ में राजस्थानी लोककथाओं के बारे में बताया गया है कि इनका विकास , मौखिक परंपरा में हुआ है ।ये छोटी भी होती और लम्बी भी होती हैं।इनमें असंभव बातों का समावेश भी होता है और इनका अंत सुखमय होता है। लेखक ने ,मोटे तौर पर इनका ११ वर्गों में वर्गीकरण किया है।राजस्थानी लोक गाथा विषय है अध्याय ३ का।इनका अपना ही विशेष स्थान है ।इनमें लोक प्रचलित जान भाषा का प्रयोग होता है।इनमें इतिहास , कल्पना, वीर , श्रृंगार एवं करुण रस का समावेश होता है और वचन पालन की परंपरा का निर्वाह होना बताया जाता है ।लेखक ने मोटे तौर पर इनका पांच वर्गों में वर्गीकरण किया है ।पुस्तक में तीन प्रमुख लोक गाथाओं , पाबू जी री, तेजा जी की और बगड़ावत जी की लोक कथाओं का सार दिया गया है ।
अध्याय ४ में लोक देवी देवता एवं लोकोत्सव पर चर्चा कि गई है। राजस्थान में कई लोकदेवता हुए हैं जिन्होंने जनहित के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। बाबा रामदेव जी और तेजा जी समेत १५ लोक देवताओं के बारे में और इसी तरह कैला देवी. जीणमाता और करणीमाता समेत कुल ९ लोक देवियों के बारे में संक्षिप्त में बताया गया है ।उत्सव, त्यौहार और मेले , काफी समय से चले आ रहे हैं, लेखक ने इनमें से रामनवमी, रक्षाबंधन, दशहरा,दीपावली और होली समेत कुछ २४ त्यौहारों का संक्षिप्त वर्णन किया है। इनके अलावा अन्य मेलों में पुष्कर मेला, रामदेवरा मेला, अजमेर शरीफ का उर्स समेत ९ मेलों का वर्णन किया गया है ।अध्याय ५ में बताया गया है कि राजस्थानी लोक नाट्य , एक दृश्य और सशक्त माध्यम है और इसमें जाति-सम्प्रदाय का भेदभाव नहीं होता है ।मोटे तोर पर लेखक ने राजस्थानी लोक नाट्यों को चार भागों में वर्गीकृत किया है ।स्वांगों के रूप और प्रकार, ख्यालों की परंपरा तथा उनके रूप के बारे में भी बताया है ।लोक नाट्यों की विभिन्न शैलियों पर चर्चा करते हुए वाद्य यंत्रों, वेशभूषाओं और बोलियों के बारे में, विस्तार से बताया गया है.
अध्याय ६ में लोक कला, लोक संगीत, वाद्य एवं लोक विश्वास पर चर्चा की गई है. लोक कला में आँगन , भीत , शरीर के अंग, वस्त्र, बर्तन या अस्त्र शास्त्र पर मांडने की परंपरा बहुत ही पुरानी है । लोक नृत्य राजस्थानी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसमे १८ प्रकार के मुख़्य वाद्यों का प्रयोग होता है ।घूमर और गरबा समेत सात प्रकार के नृत्यों का वर्णन किया गया है ।कालबेलिओं के नृत्य ने तो विदेशों में भी धूम मचा दी है। लोक विश्वास और मान्यताओं पर लिखते हुए शकुन जैसे दिलचस्प विषय पर शुभ और अशुभ की काफी चर्चा की गई है ।राजस्थानी संस्कृति के बारे में अंतिम अध्याय ७ में लेखक ने इस संस्कृति के दो पहलुओं, भौतिक सौंदर्य और आभ्यंतर सौंदर्य के बारे में लिखते हुए बताया है कि राजस्थानी लोक संस्कृति, अपनी सतरंगी इंद्रधनुषी छटा चहुँ ओर बिखेरती है ।
हालाँकि राजस्थानी संस्कृति पर अनेक लेखकों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं, परन्तु इस पुस्तक की विशेषता यह है कि विद्वान लेखक ने मूलभूत बातें बताते हुए , लोकगाथाओं के साथ , रूचिकर बनाते हुए , पाठकों को राजस्थानी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया है ।समीक्षक की राय में , यह पुस्तक , लोक साहित्य के पाठकों , शोधकर्ताओं , विद्यार्थियों और शिक्षकों आदि के लिए उपयोगी सिद्ध होगी ।

------------Reviewer (समीक्षक ) vijaiksharma

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