संपूर्ण चाणक्यनीति, व्याख्याकार- विश्वमित्र शर्मा, संपादन-संवर्धन- काका हरिओम,
प्रकाशक: मनोज पब्लिकेशन्स, दिल्ली, भाषा: हिंदी, पृष्ठ संख्या: 185, मूल्य, रू120/=,
संशोधित
संस्करण:2012,
ISBN:978-81-310-0137-0
चाणक्य
का नाम आते ही उनकी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता
के लिए उनके प्रति आदरभाव आ जाते हैं I जिस काल में उनका जीवन व्यतीत हुआ, वह आज की
परिस्थितियों से अलग था , परन्तु
फिर भी उनकी बताई गई बातें, आज भी उतनी ही सटीक, सच और प्रभावशाली हैं, जितनी की, उन परिस्थितियों में
थी । परन्तु कुछ बातें अवश्य आज की परिस्थिति में कम उपयुक्त हैं या नहीं हैं ।
उन्होंने तो उस समय की परिस्थितियों के अनुसार रचनाएँ लिखी थी । कुछ भी हो, बातें बिलकुल
उपयुक्त और प्रभावकारी है। उनकी शिखा खुल जाने की घटना जगत विदित है जो, चाणक्य की नीतियों
द्वारा, एक साम्राज्य के नष्ट
होने का,
कारण भी बनती है ।
पुस्तक के आरम्भ में
प्रस्तावना लिखी गई है और फिर तुरंत प्रथम अध्याय आरम्भ हो जाता है । पुस्तक में
कुल १७ अध्याय हैं । प्रत्येक अध्याय के आरम्भ में
कुछ पंक्तियों में, उस अध्याय की विशेष बात वर्णित की गई है और फिर
कई संस्कृत
श्लोक और उनके हिंदी में अर्थ दिए गये हैं, और उन पर विस्तार से चर्चा
की गई है । प्रत्येक अध्याय के अन्त में, अध्याय का सार
समझाया गया है ।
प्रथम
अध्याय में बताया गया है कि मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता। दुष्ट
स्वभाव वाले मित्र, नौकर, स्त्रियों आदि से
सावधान किया गया है ।बुद्धिमान व्यक्ति के लिए स्व-रक्षा, धन-रक्षा तथा परिजन-रक्षा करना जरुरी है
।
तथा
जहाँ आदर सम्मान नहीं हो,
वहां नहीं जाना चाहिए । लोभ के स्थान पर, संतोष अपनाना चाहिए।
दूसरों से अच्छे गुण अपना लेने चाहिए । सातवें अध्याय में बताया गया है कि अपनी कठिनाइयों को, हर एक पर प्रकट नहीं
करें, जो अन्तरंग और
भरोसेमंद हो,
उनसे ही सलाह लें । और भी कई बातें बताई गई हैं जो नहीं करनी चाहिए। विद्या, वाणी, संयम पर ध्यान देने
को कहा गया है। इसी प्रकार विभिन्न अध्यायों में विभिन्न प्रकार के लोगों से, विभिन्न परिस्थितियों
में कैसा व्यहार करना चाहिए, वर्णन किया गया है । सत्रहवें अध्याय में
गुरु से विद्या प्राप्त करने का महत्व बताया गया है । साथ ही जो जैसा करे, उससे वैसा ही बर्ताव
करना चाहिए। मन पवित्र होना चाहिए। संस्कार जीवन का आधार है । साथ में दूसरों के
कष्टों को भी समझना चाहिए।
पुस्तक
के बैक कवर पेज पर लिखे गए श्लोकों में कहा गया है कि चाणक्य ने, अनेक शास्त्रों से
एकत्रित किये गए राजनीति ज्ञान का वर्णन किया है, जो मानव मात्र के कल्याण की इच्छा से किया गया
है और इसे जान कर मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है कि धर्म अधर्म क्या है और कौन से
कार्य करने के लिए योग्य हैं और कौन से अयोग्य हैं । पुस्तक की छपाई
आकर्षक है ।संस्कृत के अंश लाल रंग में छपे हैं
और शेष सामान्य काले रंग में । काग़ज की गुणवत्ता
उत्तम है। छपाई भी यथोचित बड़े अक्षरों में
की गई है जिससे पढ़ने में सुगमता रहती है
।पुस्तक का मुख पृष्ठ रंगीन और आकर्षक है
।पुस्तक के अंत में ७ पृष्ठों में प्रकाशक ने अपने द्वारा प्रकाशित विभिन्न
पुस्तकों के बारे में जानकारी प्रस्तुत की है । हालाँकि चाणक्यनीति पर यह पहली
पुस्तक नहीं है फिर भी संक्षेप में यह कह
सकते हैं कि गूढ़ रहस्य देने वाली यह पुस्तक बहुत ही रुचिकर है । समीक्षक की राय
में, राजनीति ज्ञान के क्षेत्र में , यह अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है और राजनीति के विद्यार्थियों, इस क्षेत्र में, काम कर रहे विभिन्न स्तरों के व्यक्तियों के
लिये, मार्गदर्शक के रूप में उपयुक्त है, जिससे सम्बंधित
व्यक्तियों द्वारा,
जनकल्याण के लिए उपयुक्त निर्णय लिए जा सके ।
--------------समीक्षक (Reviewer): vijaiksharma