पंचस की लहरें
(परिवर्तन की ओर एक कदम )
ले.: जय चंद्र झा , प्रकाशक : क्वालिटी सर्किल फोरम ऑफ़ इंडिया
, दिल्ली चैप्टर ,
पृष्ठ संख्या: १५०, मूल्य: लिखा नहीं , प्रकाशन वर्ष : लिखा
नहीं , शायद २०१८
उत्पादकता सुधार की अनेक जापानी तकनीकों में से एक महत्वपूर्ण
तकनीक है --5-स, जिसे लेखक ने पंचस के रूप में बताया है, और हमारे संगठनों ,
उद्योगों, कार्यालयों ,
व्यक्तिगत जीवनों तथा
अन्य सभी जगहों में , उत्पादकता में सुधार हेतु
या सरल भाषा में कहें तो, अनेक लाभों की प्राप्ति हेतु , यह तकनीक अत्यंत उपयोगी
है, परन्तु जरुरत इस बात की है कि सभी लोगों को इसके बारे में जानकारी दी जाये और फिर
इसके उपयोग के लिए उन्हें प्रेरित किया जाये ।
इस पुस्तक में कुल ३२ अध्याय हैं , जिनमें पंचस के विभिन्न
पहलुओं पर चित्रों, वस्तु-स्थिति अध्ययनों , सिद्धांतों और प्राप्त
परिणामों इत्यादि के द्वारा चर्चा की गई है। पुस्तक का आरंभ , अध्याय एक के स्वागत
गान से किया गया है । अध्याय २,३,४ और ५ में पंचस की
भूमिका लिखी गयी है । पंचस में स्वेच्छा , सद्भाव, सहभागिता, समन्वय और संकल्प, मूल रूप में इसी क्रम
में , शामिल किये जाते हैं. इसके पश्चात् कुछ
अध्यायों में , इन्हीं पांच बिंदुओं को
विस्तार से, लेख और कविता के माध्यम से, समझाया गया है ।अध्याय
६ और ७ में स्वेच्छा, ८ और ९ में सद्भाव,
अध्याय १० और ११ में सहभागिता, अध्याय १२ और १३ में
समन्वय और अध्याय १४ और १५ में संकल्प के बारे में बताया गया है । संख्या १६ से २६
तक के अध्यायों में गीतों के माध्यम से
इनके बारे में प्रेरणा दी गयी है । अध्याय २७ परिशिष्ट है जिसमें बताया गया है कि किस तरह से प्रेरणा प्राप्त कर छोटे समूह के निर्माण
में बढ़ावा मिला, यह सब चित्रों के माध्यम से बताया गया है ।अध्याय २८ में नुक्कड़
नाटकों से, पंचस की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । इस अध्याय में, एक से बढ़ कर एक ,
कुल पांच वस्तुस्थिति
अध्ययनों का वर्णन किया गया है ।अध्याय २९ में कविता और लेख के माध्यम से, पंचस के क्रम में लोगों
की भावनाओं को व्यक्त किया गया है, और अध्याय ३० में लोगों
की भावनाओं को पोस्टरों के माध्यम से बताया गया है।अध्याय ३१ में पंचस प्रतिपालन के
क्रम में आने वाले चरणों की झलकियां बताई गई है । यह सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है ।इसमें
कई पंचस समूहों , कार्य विधियों और समस्याओं के निदान आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गई
है और उपलब्धियों के बारे में बताया गया है । अंतिम अध्याय संख्या ३२ में निष्कर्ष
में बताया गया है कि सभी तरफ परिवर्तन और सुधार करने के उद्देश्य से पंचस तकनीक
बड़ी कारगर है।
पुस्तक के मुखपृष्ठ और पीछे के पृष्ठ, दोनों आकर्षक हैं ।पुस्तक
अच्छी गुणवत्ता के कागज़ पर मुद्रित की गयी है। लेखक का परिचय पीछे के पृष्ठ पर दिया
गया है। लेखक ने इस पुस्तक को अपने पूज्य माता
जी और पिता जी को समर्पित किया है.प्राक्कथन श्री मधुकर शर्मा जी ने लिखा है ।क्वालिटी
सर्किल फोरम ऑफ़ इंडिया के सहसचिव और सचिव के दो शब्दों के बाद , लेखक ने पुस्तक की
प्रस्तावना लिखी है ।विवरण-तालिका में ३२ अध्यायों का उल्लेख किया गया है ।समीक्षक
की राय में संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि रोचक और सरल तरीके से हिंदी भाषा में लिखी गई , यह पुस्तक,
पंचस को लोकप्रिय बनाने
और परिवर्तन की ओर ले जाने में , अवश्य ही एक सराहनीय कदम के रूप में मान्यता प्राप्त करेगी और
सभी कार्यरत व्यक्तियों ओर विद्यार्थीगण अदि के लिए यह पुस्तक प्रेरणास्वरूप सिद्ध
होगी । रुचिपूर्ण तरीके से, इस तकनीकी विषय पर पुस्तक लिखने के लिए लेखक और साथ ही
पुस्तक के प्रकाशन के लिए क्वालिटी सर्किल फोरम ऑफ़ इंडिया, दिल्ली चैप्टर दोनों बधाई के पात्र हैं।
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